Khagol Vigyan in Hindi PDF by khan sir || Khagol shastra in Hindi pdf download

 

Khagol Vigyan in Hindi PDF by khan sir


  • ब्रह्माण्ड :- दिखाई पड़ने वाले समस्त आकाशीय पिण्ड को ब्रह्माण्ड कहते हैं। ब्रह्माण्ड विस्तारित हो रहा है । ब्रह्माण्ड में सर्वाधिक संख्या तारों की है।


  • तारा :- वैसा आकाशीय पिण्ड जिसके पास अपनी उष्मा तथा प्रकाश हो तारा कहलाता है।


  •  तारा बनने से पहले विरल गैस का गोला होता है ।


  •  जब विरल गैस केन्द्रित होकर पास आ जाते हैं तो घने बादल क समान छा जाते हैं जिन्हें निहारिका ( Nebula) कहते हैं। 


  • जब इन Nebula में सलयन विधि द्वारा दहन की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है तो वह तारों का रूप ले लेता है ।


  • तारे में हाइड्रोजन का संलयन He में होते रहता है । तारे में ईंधन प्लाज्मा अवस्था में रहता है।


  •  तारों का रंग उसके पृष्ठ ताप पर निर्भर करता है ।

 लाल रंग → निम्न ताप (6000°C)

सफेद रंग → मध्यम ताप 

नीला रंग → उच्च तापमान


  • *तारों का भविष्य उसके प्रारम्भिक द्रव्यमान पर निर्भर करता है।


  • लाल दानव :- जब तारा (सूर्य) का ईंधन समाप्त होने लगता है तो वह लाल दानव का रूप ले लेता है और लाल दानव का आकार बड़ा होने लगता है


Case I :- यदि लाल दानव का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 1.44 गुणा से छोटा है तो वह श्वेत वामन बनेगा।


  • श्वेत वामन (White dwarf) :- इसे जीवाश्म तारा कहते हैं ।छोटा तारा अंतिम रूप से श्वेत वामन अवस्था में ही चमकता है। 


  •  काला वामन (Black dwarf) : - श्वेत वामन जब चमकना छोड़ देता है तो वह काला वामन का रूप ले लेता है । उस प्रकार छोटे तारों का अंत हो जाता


Case II :- यदि लाल यादव का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 1.44 गुणा से बड़ा है तो वह अभिनव तारा का रूप लेगा ।


  • अभिनव तारा (Super Nova) :- इसमें कार्बन जैसे हल्के पदार्थ लोहा जैसे भारी पदार्थ में परिवर्तित होने लगता है जिस कारण ये विस्फोट करने लगते हैं। अत: इसे विस्फोटक तारा कहते हैं।


  • विस्फोट के बाद यह न्यूट्रॉन तारा का रूप ले लेता है।


  • न्यूट्रॉन तारा :- न्यूट्रॉन तारा विस्फोट के बाद बनता है। इसका घनत्व उच्च हो जाता है और आकार छोटा हो जाता है।


  • Pusser :- यह तारा चमकता और बुझता रहता है। इससे उच्च संख्या में विद्युत चुम्बकीय तरंगे निकलती हैं ।


  •  क्वेसर :- ये तारों की लगभग अंतिम अवस्था होती हैं क्वेसर की चुम्बकीय क्षमता अति उच्च होती है ।


  • Black Hole ( कृष्ण विवर) :- इसका घनत्व अति उच्च होता है। यह प्रकाश को भी गुजरने नहीं देता है । इसकी खोज चन्द्रशेखर ने की।


  • Black Hole की चुम्बकीय क्षमता भी अधिक होती है । ये श्वेत वामन और काला वामन को भी अपनी ओर खींच लेता है । अत: तारों का अंत Black Hole के रूप में हो जाता है।


  • चन्द्रशेखर सीमा :- सूर्य के द्रव्यमान के 1.5 गुणा (1.44) द्रव्यमान को चन्द्रशेखर सीमा कहते हैं लाल दानव के बाद तारों का भविष्य चन्द्रशेखर सीमा पर निर्भर करता है


  • लाल दानव का आकार बहुत ही बड़ा हो जाता है।


  •  सूर्य जब लाल दानव का रूप लेगा तो वह अपने सीमप के चार ग्रहों को जला देगा।


  • White Hole :- यह एक परिकल्पना है जिससे यह मान लिया जाता है कि सभी प्रकाश एक ही बिन्दु से आ रहे हैं


  • आकाश गंगा (Galaxy) :- ब्रह्माण्ड में तारों के असंख्य समूह को Galaxy कहते हैं।


  • आकाश गंगा का आकार सर्पिलाकार (Spiral ) होता है । तारे इस सर्पिलाकार भुजा के किनारे पाया जाता है । जैसे-जैसे तारों की आयु बढ़ती जाती है वह आकाश गंगा के मध्य में जाने लगता है।


  • बल्ज में तारों की संख्या अधिक होती है। आकाश गंगा का निर्माण आज से 12 बिलियन वर्ष (12 x 10°) पूर्व हुआ था। 


  • ब्रह्माण्ड में लगभग 100 अरब अकाश गगाएं हैं और प्रत्येक आकाश में लगभग 100 अरब तारे हैं।


  • Super Clauster :- तीन आकाश गंगाओं के समूह को Super Clauster कहा जाता है। हम जिस Super Clauster में रहते हैं उसमें भी तीन आकाश गंगाएँ हैं।


  • देवयानि (Andromeda) :- यह हमसे सबसे करीबी आकाश गंगा है। यह हमारी आकाश गंगा से 2.2 मिलियन प्रकाश वर्ष (2.2 x 10 प्रकाश वर्ष) दूर है। दूसरा निकटतम आकाशगंगा NGC-M-33 है ।

  •  सूर्य जिस आकाशगंगा में है उसे मंदाकिनी कहते हैं।


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