ब्रह्माण्ड का अध्ययनAstronomy(खगोलकी) कहलाता है।
ब्रह्माण्ड :- दिखाई पड़ने वाले समस्त आकाशीय पिण्ड को ब्रह्माण्ड कहते हैं। ब्रह्माण्ड विस्तारित हो रहा है । ब्रह्माण्ड में सर्वाधिक संख्या तारों की है।
तारा :- वैसा आकाशीय पिण्ड जिसके पास अपनी उष्मा तथा प्रकाश हो तारा कहलाता है।
तारा बनने से पहले विरल गैस का गोला होता है ।
जब विरल गैस केन्द्रित होकर पास आ जाते हैं तो घने बादल क समान छा जाते हैं जिन्हें निहारिका ( Nebula) कहते हैं।
जब इन Nebula में सलयन विधि द्वारा दहन की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है तो वह तारों का रूप ले लेता है ।
तारे में हाइड्रोजन का संलयन He में होते रहता है । तारे में ईंधन प्लाज्मा अवस्था में रहता है।
तारों का रंग उसके पृष्ठ ताप पर निर्भर करता है ।
लाल रंग → निम्न ताप (6000°C)
सफेद रंग → मध्यम ताप
नीला रंग → उच्च तापमान
*तारों का भविष्य उसके प्रारम्भिक द्रव्यमान पर निर्भर करता है।
लाल दानव :- जब तारा (सूर्य) का ईंधन समाप्त होने लगता है तो वह लाल दानव का रूप ले लेता है और लाल दानव का आकार बड़ा होने लगता है
Case I :- यदि लाल दानव का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 1.44 गुणा से छोटा है तो वह श्वेत वामन बनेगा।
श्वेत वामन (White dwarf) :- इसे जीवाश्म तारा कहते हैं ।छोटा तारा अंतिम रूप से श्वेत वामन अवस्था में ही चमकता है।
काला वामन (Black dwarf) : - श्वेत वामन जब चमकना छोड़ देता है तो वह काला वामन का रूप ले लेता है । उस प्रकार छोटे तारों का अंत हो जाता
Case II :- यदि लाल यादव का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 1.44 गुणा से बड़ा है तो वह अभिनव तारा का रूप लेगा ।
अभिनव तारा (Super Nova) :- इसमें कार्बन जैसे हल्के पदार्थ लोहा जैसे भारी पदार्थ में परिवर्तित होने लगता है जिस कारण ये विस्फोट करने लगते हैं। अत: इसे विस्फोटक तारा कहते हैं।
विस्फोट के बाद यह न्यूट्रॉन तारा का रूप ले लेता है।
न्यूट्रॉन तारा :- न्यूट्रॉन तारा विस्फोट के बाद बनता है। इसका घनत्व उच्च हो जाता है और आकार छोटा हो जाता है।
Pusser :- यह तारा चमकता और बुझता रहता है। इससे उच्च संख्या में विद्युत चुम्बकीय तरंगे निकलती हैं ।
क्वेसर :- ये तारों की लगभग अंतिम अवस्था होती हैं क्वेसर की चुम्बकीय क्षमता अति उच्च होती है ।
Black Hole ( कृष्ण विवर) :- इसका घनत्व अति उच्च होता है। यह प्रकाश को भी गुजरने नहीं देता है । इसकी खोज चन्द्रशेखर ने की।
Black Hole की चुम्बकीय क्षमता भी अधिक होती है । ये श्वेत वामन और काला वामन को भी अपनी ओर खींच लेता है । अत: तारों का अंत Black Hole के रूप में हो जाता है।
चन्द्रशेखर सीमा :- सूर्य के द्रव्यमान के 1.5 गुणा (1.44) द्रव्यमान को चन्द्रशेखर सीमा कहते हैं लाल दानव के बाद तारों का भविष्य चन्द्रशेखर सीमा पर निर्भर करता है
लाल दानव का आकार बहुत ही बड़ा हो जाता है।
सूर्य जब लाल दानव का रूप लेगा तो वह अपने सीमप के चार ग्रहों को जला देगा।
White Hole :- यह एक परिकल्पना है जिससे यह मान लिया जाता है कि सभी प्रकाश एक ही बिन्दु से आ रहे हैं
आकाश गंगा (Galaxy) :- ब्रह्माण्ड में तारों के असंख्य समूह को Galaxy कहते हैं।
आकाश गंगा का आकार सर्पिलाकार (Spiral ) होता है । तारे इस सर्पिलाकार भुजा के किनारे पाया जाता है । जैसे-जैसे तारों की आयु बढ़ती जाती है वह आकाश गंगा के मध्य में जाने लगता है।
बल्ज में तारों की संख्या अधिक होती है। आकाश गंगा का निर्माण आज से 12 बिलियन वर्ष (12 x 10°) पूर्व हुआ था।
ब्रह्माण्ड में लगभग 100 अरब अकाश गगाएं हैं और प्रत्येक आकाश में लगभग 100 अरब तारे हैं।
Super Clauster :- तीन आकाश गंगाओं के समूह को Super Clauster कहा जाता है। हम जिस Super Clauster में रहते हैं उसमें भी तीन आकाश गंगाएँ हैं।
देवयानि (Andromeda) :- यह हमसे सबसे करीबी आकाश गंगा है। यह हमारी आकाश गंगा से 2.2 मिलियन प्रकाश वर्ष (2.2 x 10 प्रकाश वर्ष) दूर है। दूसरा निकटतम आकाशगंगा NGC-M-33 है ।
सूर्य जिस आकाशगंगा में है उसे मंदाकिनी कहते हैं।